Maha rishi valmiki jyanti

प्रस्तावना:
भारत देश की पवित्र धरती पर कई महान लोगो ने जन्म लिया है।इसलिए भारत को विद्वानों का देश कहा जाता है । आज हम जिस निबंध के बारे में बात करने जा रहे हैं, उसका अपना एक इतिहास है। ओर कथाएं है और यह कथा महाऋषि श्री वाल्मीकि जी के बारे में है। महर्षि वाल्मीकिजी जो की महान ग्रंथ “रामायण” के रचयिता है। इन्होंने इस विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ “रामायण” की रचना संस्कृत भाषा में की थी। महाऋषि वाल्मीकि की जन्म जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती हैं।
महर्षि वाल्मीकि जी को हिंदू ग्रंथों के सबसे पहले कवि के रूप में भी माना जाता है। उन्होंने भगवान श्रीराम जी की जीवन चरित्र को अपने शब्दों में पहली बार सबसे लंबे काव्य के रूप में लिखित किया था।

महर्षि वाल्मीकि की डाकु से संत बनने तक की कहानी:
वेदों और पुराणों की माने तो महर्षि वाल्मीकिजी महर्षि कश्यप और माता आदित्य के नवे पुत्र वरूण की संतान थे। उनका नाम रत्नाकर था ओर शुरू के अपने जीवन का निर्वाह करने हेतु और अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए वह कुछ ऐसे लोगों मे फंस गये जो लुट पाट आदि की वारदाते किया करते थे। वह बड़े व्यापारी और आम लोगों को मारकर लूट लिया करते थे। एक बार जब वह इसी तरह किसी को लूटने के लिए जाल बिछाए बैठे थे, वहीं उनकी भेट नारद मुनि से हो गए। इन्होंने नारद मुनि को लूटने के इरादे से बंदी बना लिया। नारद जी ने उनसे पूछा कि आप ऐसा पाप भरा कार्य क्यो करते हैं। तो रत्नाकर डाकू ने बताया कि वह यह सब अपने परिवार का भरण पोषण करने हेतु करते हैं। तभी नारद जी ने पूछा कि क्या तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे इस पाप का भागीदार बनेगा तो रत्नाकर डाकू ने जवाब दिया के हा बिलकुल बनेगा। तब नारद जी ने उनसे कहा कि जाओ और जाकर अपने परिवार से पूछो कि क्या वह तुम्हारे पाप के भागीदार बनेंगे। अगर वे हा कहेंगे तो मैं तुमको अपना सारा धन दे दूंगा। ऐसा नारद मुनि ने उन्से प्रश्न कीया। जब बाल्मीकि जी ने अपने परिवार से इस बारे में पूछा कि वह उनके इस पाप के भागीदार बनेंगे तो उनके परिवार ने मना कर दिया। नारद मुनि ने कहा कि हे रत्नाकर तुम्हारा पुरा परिवार इस पाप में तुम्हारा साथ नहीं दे रहा हे तो तुम यह पाप अकेले क्यों करते हो ? नारद जी की यह वाणी सुनकर रत्नाकर ने अपना डाकुओं का जीवन छोड़कर तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने कई साल तपस्या में बिताए और आगे चलकर वह डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बने। महर्षि वाल्मीकि के जीवन के साथ अनेक प्रकार की दंत कथाएं जुड़ी हुई है। दंत कथाओं के अनुसार वह ऐक दिन सप्त ऋषियों के साथ सामना हुआ और उन ऋषियों के सहवास में आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई । वे अपना घर परिवार सब कुछ त्याग कर वह एक वृक्ष के नीचे समाधि लगा कर बैठ गए और “राम राम “ मंत्र का जाप आरंभ कर दिया और कहा जाता है कि लगातार इसी अवस्था में 12 वर्ष तक बैठे रहे ।और उनके शरीर पर दीमक (खेत की चींटी) ने उनके शरीर पर एक बाल्मीकि यानी दीमक की पहाड़ी बना डाली थी और उसी वक्त सप्त ऋषि ने उनकी तपस्या देखी और उनको ऐक नए नाम “वाल्मीकि” कहकर संबोधित किया, ओर इस तरह रत्नाकर डाकु महषिॅ वाल्मिकी बन गया । कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि भील परिवार से संबंध रखते थे। इसलिए समस्त पिछड़ी जाति के लिए विशेष रूप से उनके जन्मदिवस को बड़ी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता हैं।

महान ग्रंथ रामायण की रचना :
वाल्मीकि जी ने तमस नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया था। एक दिन वह नदी के किनारे अपने ध्यान में लीन थे तभी उन्होंने एक पक्षी की आवाज सुनी। वह आवाज एक क्रोच पक्षी (सारस-हंस नामक पक्षी का एक सुंदर जोडा ) वाल्मीकि उनके पेरो के पास तड़पता हुआ आ गिरा। उस पक्षी पर एक शिकारी ने बाण चलाया था। यह देखकर उनके ह्रदय में करुणा उत्पन्न हुई।
ओर उनके मुह से यह श्लोक निकला जो रामायण के उद्भभव का कारण बना ।
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥”
इसका अर्थ है कि -
“अनंत काल तक आपको अपने कार्य से मुक्ति नही मिलेगी।
तुमने अपने स्वाथॅ के लिए एक पक्षी के प्यार को बेदर्दी से मार ड़ाला”
यही कारण है कि ऊन पर भगवान विष्णु की कृपा हुई ओर उन्हे ज्ञान का आभास हुआ । इतना ही नहीं बल्कि भगवान विष्णु ने उनको भगवान राम ओर सीता के संघर्ष कि कथा भी सुनाई ओर इस कथा से प्रेरीत होकर उनहोंने महाकाव्य “रामायण “ की रचना की ।
उपसंहार:
महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन हमे बुराई को छोड़कर अच्छाई के मागॅ पर चलने के लिए प्रेरणा देता है । महा कवी ने संस्कृत में महा काव्य रामायण की रचना की थी, जिसकी प्रेरणा उन्हें ब्रह्मा जी से मीली थी । रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चन्द्र जी के चरित्र का विवरण दिया हैं। इस काव्य मे 24 हजार श्लोक लिखे गए हैं ।महर्षि वाल्मीकि के जीवन का भी विवरण हैं । उन्होने राम के चरित्र का चित्रण किया, उन्होंने माता सीता को अपने आश्रम में रखा उन्हें रक्षा दी । उनके दोनो पुत्र लव कुश का जन्म भी उनके आश्रम मे हुआ था ओर बाद में, राम एवम सीता के पुत्र लव कुश को ज्ञान भी दिया.
भारत देश में वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। आमतौर पर उत्तर भारत में इसका महत्व है। वाल्मीकि जयंती का महत्व हिंदू धर्म में अधिक माना जाता है। ताकि उनके सत्कमॅ से प्रेरणा लेकर मनुष्य बुरे कर्म छोड़कर सत कर्मों में मन लगाए।
हेतल .जोशी …

Source : https://hindi-essay.com/nibandh/

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